रमज़ान के चांद का हुआ दीदार, कल रखा जाएगा पहला रोज़ा…
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हरियर एक्सप्रेस, रायपुर। रमज़ान के मुकद्दस महीने का आगाज़ चांद के दीदार के साथ हो चुका है। आज शनिवार 1 मार्च की शाम भारत में रमज़ान का चांद देखा गया और इसी के साथ 2 मार्च को भारत में पहला रोज़ा रखा जाएगा। आज यानी 1 मार्च से ही तमाम मस्जिदों में तरावीह की नमाज़ शुरू हो जाएगी।
माह-ए-रमज़ान इस्लाम के सबसे पाक और मुबारक महीनों में से एक है, जो कि शाबान के बाद आता है। दुनियाभर के मुसलमानों को रमज़ान का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है, जो कि आखिरकार खत्म हुआ। आज यानी 1 मार्च को भारत में कुछ जगहों पर रमज़ान का चांद नज़र आया है, जिसके बाद मुसलमानों में खुशी का माहौल है। दिन ढलने के साथ ही सभी की निगाहें आसमान पर ही टिकी हुई थी, क्योंकि चांद का दीदार करने के बाद ही माह-ए-रमज़ान की मुबारकबाद दी जाती है और रोज़े रखे जाते हैं।
रमज़ान का मुकद्दस महीना मुसलमानों के लिए बेहद खास होता है, जिसमें मुसलमान 29 या 30 दिनों तक रोज़े रखते हैं। हर बालिग और सेहतमंद शख्स के लिए रोज़ा रखना फ़र्ज़ होता है। रोज़ा इस्लाम के पांच सबसे जरूरी अरकान यानी स्तंभों में से एक है। रमज़ान का चांद दिखने के साथ सभी मस्जिदों में तरावीह की तैयारी शुरू हो गई है। चांद के दीदार के साथ ही बाजारों में रौनक देखने को मिल रही है। रमज़ान के दौरान रोज़ेदारों के लिए सेहरी और इफ्तार भी अहम होता है।
रमज़ान में तरावीह की नमाज़ पांच वक्त की नमाज़ के अलावा एक खास नमाज़ अदा की जाती है, जिसे तरावीह की नमाज़ कहा जाता है। पूरे माह-ए-रमज़ान में तरावीह की नमाज़ पढ़ी जाती है। हालांकि, तरावीह की नमाज़ किसी भी मुसलमान पर फ़र्ज़ नहीं है। तरावीह की नमाज़ इस्लाम में सुन्नत-ए-मुअक्किदा मानी गई है, यानी इसे पढ़ने जरूरी भी नहीं है और न पढ़ने पर कोई गुनाह भी नहीं है। हालांकि, तरावीह की नमाज़ पढ़ने पर ज्यादा सवाब मिलता है।
रमज़ान के चांद का दीदार होने के साथ ही तमाम मस्जिदों में तरावीह पढ़ी जाती है। तरावीह की नमाज़ ईशा की नमाज़ के बाद अदा की जाती है और ज़रूरी नहीं कि तरावीह की नमाज़ मस्जिद में जमात के साथ ही पढ़ी जाए। इसे आप अपने घर पर अकेले में भी पढ़ सकते हैं।
माह-ए-रमज़ान की अहमियत
मुसलमानों के लिए रमज़ान का महीना इसलिए भी ज्यादा अहमियत रखता है, क्योंकि इसमें इस्लाम धर्म की सबसे पाक किताब यानी कुरआन ए पाक नाज़िल हुई थी यानी उतारी गई थी। रमज़ान में रोज़े रखना इस्लाम का बुनियादी हिस्सा है। हालांकि, कुछ हालातों में रोज़ा न रखने की छूट दी गई है। नाबालिग बच्चे, प्रेग्नेंट महिला, बुजुर्ग, बीमारी और पीरियड्स की हालत में रोज़ा न रखने की इजाज़त है। रमज़ान के पूरे 30 दिन या 29 वें दिन चांद का दीदार कर ईद उल फितर का त्यौहार मनाया जाता हैं।