May 20, 2025

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भिलाई में शिव महापुराण का तीसरा दिन: पंडित प्रदीप मिश्रा ने 7 दशकों बाद इस बार के सावन का बताया विशेष संयोग, डॉक्टरों को बताया शिव का रूप, तपस्या के लिए आखें बंद करना जरूरी नहीं, रुद्राक्ष का वृक्ष कैसे हुआ उत्पन्न? CM की धर्मपत्नी कौशल्या साय, विधायक और शिवरीनारायण के मठाधीश हुए शामिल …

भिलाई में शिव महापुराण का तीसरा दिन: पंडित प्रदीप मिश्रा ने 7 दशकों बाद इस बार के सावन का बताया विशेष संयोग, डॉक्टरों को बताया शिव का रूप, तपस्या के लिए आखें बंद करना जरूरी नहीं, रुद्राक्ष का वृक्ष कैसे हुआ उत्पन्न? CM की धर्मपत्नी कौशल्या साय, विधायक और शिवरीनारायण के मठाधीश हुए शामिल …

– 1953 के बाद इस साल बना सावन का ऐसा संयोग

– CM की धर्मपत्नी कौशल्या साय, विधायक और शिवरीनारायण के मठाधीश हुए शामिल 

– “एक शिवभक्त कई पीढ़ियों को पार लगा देता है”

– शिव का रूप है डॉक्टर- पंडित प्रदीप मिश्रा

– “तपस्या के लिए आखें बंद करना जरूरी नहीं, इन्द्रियों पर काबू जरुरी”

– “1 हजार साल खुली आंखों से तपस्या के बाद महादेव के एक बूंद आंसू से उतपन्न हुआ रुद्राक्ष का वृक्ष”

– 72 साल बाद ऐसा संयोग, रुद्राक्ष को कैसे करें सिद्ध?

– “शिव कथा कहती है सबसे पहले वाचक भी शंकर है, श्रोता भी शंकर है” 

हरियर एक्सप्रेस, भिलाई। भिलाई में पंडित प्रदीप मिश्रा के श्रीमुख से शिव महापुराण के तीसरे दिन भी हजारों की संख्या में शिवभक्त बरसात और कीचड़ के मध्य कथा श्रवण करने पहुंचे। शनिवार 27, जुलाई को अंतराष्ट्रीय कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया कि, इस बार जो सावन में संयोग बन रहा है वो 72 साल बाद आया है। सावन की शुरुआत 22, जुलाई 2024 सोमवार को हुई और सावन समाप्त भी 19, अगस्त 2024 सोमवार के दिन होगा। उन्होंने बताया कि, इससे पहले 72 साल पहले 1953 में ऐसा संयोग बना था जब 27, जुलाई 1953 को आज ही के दिन सावन की शुरुआत हुई थी।

CM की धर्मपत्नी कौशल्या साय, विधायक और शिवरीनारायण के मठाधीश हुए शामिल 

उन्होंने आगे कहा कि, आप भिलाई और छत्तीसगढ़ वाले भाग्यशाली हो क्योकि 72 साल बाद ऐसा सावन आया और सावन की पहली कथा भिलाई में हो रही है। बोल बेम सेवा एवं कल्याण समिति के अध्यक्ष दया सिंह और पूरी टीम को बहुत साधुवाद। आज की कथा में लगातार दूसरे दिन CM विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी कौशल्या साय शामिल हुई। दुर्ग शहर विधायक गजेंद्र यादव भी शिवमहापुराण के तीसरे दिन कथा में उपस्थित हुए। शिवरीनारायण के मठाधीश महंत रामसुंदर दास भी पंडाल में कथा सुनने मौजूद हुए।

“एक शिवभक्त कई पीढ़ियों को पार लगा देता है”

कथा के दौरान पंडित प्रदीप मिश्रा ने गुरु, शिष्य का जिक्र करते हुए बताया कि, गुरु शिष्य को मंजिल तक पहुंचा देता है, अगर अपने घर, नगर या क्षेत्र में कोई शंकर का भक्त, शिव का गुणगान करने वाला पैदा हो जाता है, तो गुरु केवल शिष्य को पार लगा देता है परंतु अगर हमारे घर में कोई शिवभक्त जन्म ले लेता है तो वो हमारे कुल और कई पीढ़ियों को पार लगा देता है।

शिव का रूप है डॉक्टर- पंडित प्रदीप मिश्रा

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, डॉक्टर शिव का रूप है… मैं बार-बार व्यासपीठ से कहता हूं की डॉक्टर शिव का रूप है, आपको अगर कोई तकलीफ होती है तो सबसे पहले शिवरूपी डॉक्टर के पास जाइये, डॉक्टर जो दवाई दें, उस दवाई को कुंदकेश्वर महादेव के नाम से खाना प्रारंभ करिये। महादेव आपको ठीक करना शुरू कर देगा। कभी भी कोई तकलीफ आए तो डॉक्टर के पास जाइये, ट्रीटमेंट करवाइये पर साथ में महादेव पर विश्वास बनाए रखिये, सब ठीक हो जाएगा।

“दुनिया का सबसे बड़ा आभूषण है मौन रहना”

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, दुनिया का सबसे बड़ा तत्व या आभूषण मौन रहना, चुप रहना है। जिस दिन तुम्हारा व्रत है उस दिन मौन रहो, साधना करो, चुप रहने का जो सुख है वो और किसी में नहीं। ऐसा नहीं कि आंख बंद कर के ही तप कर सकते है। उन्होंने बताया कि, एक दिन शिव जी ने बोला मुझे त्रिपुरासुर का वध करने के लिए थोड़ा बल एकत्रित करना पड़ेगा, ब्रह्मा जी और विष्णु जी पूछ रहे की ये बल कहां से आएगा? शिव जी ने कहा वो बल मेरे भीतर से ही मुझे प्रकट करना पड़ेगा, मैं अस्त्र प्रकट करूंगा जिसका नाम अघोर अस्त्र है। ब्रह्मा जी ने कहा ये अस्त्र तो बहुत कठिन है आप इसे कैसे प्राप्त करेंगे? भगवान शंकर कहने लगे आप चिंता मत करो इसे प्राप्त करने के लिए में तप में बैठूंगा।

“तपस्या के लिए आखें बंद करना जरूरी नहीं, इन्द्रियों पर काबू जरुरी”

शिव जी ने अपने नेत्र खोलकर खुली आंखों से तप करना शुरू किया। इसी तरह जरूरी नहीं है की नेत्र बंध कर के बैठोगे तो भगवान मिलेंगे, शिव महापुराण की कथा कहती है, आपकी आंखें भली खुली रहें, परंतु उन नेत्रों से कुछ गलत न हो जाएं ये ध्यान रखना, नेत्र बंद इसलिए करते है क्योकि फालतू चीजों पर ध्यान न जाएं पर अपने मन में सय्यम रखो, तो नेत्र से कभी गलत दिखेगा नहीं। आप अपने इन्द्रियों को नहीं साधोगे तो गलत नजर आएगा, अगर आप अपनी इन्द्रियों को साध लिए तो कुछ गलत नहीं दिखेगा।

“1 हजार साल खुली आंखों से तपस्या के बाद महादेव के एक बूंद आंसू से उतपन्न हुआ रुद्राक्ष का वृक्ष”

उन्होंने आगे कहा कि, भगवान शिव की कथा कहती है कि, नेत्र खुले भले रखो अपने इन्द्रियों को पकड़ कर रखो और गलत चीज न देखो, अगर कोई आधा गिलास पानी लाया तो आधा गिलास पानी मत देखो, उसका दिल देखो की तुम्हारे लिए वो आधा गिलास तो पानी भर कर लाया है। शिव महापुराण की कथा कहती है कि, शंकर भगवान ने 1 हजार वर्ष तक अपना नेत्र बंद नहीं किया, बिना पलक झपकाएं तप करते रहे, जब उन्होंने अघोर अस्त्र प्राप्त कर लिया तब शिव जी ने अपने आंखें बंद की और पलक झपकाई। उनके आंखों से एक बूंद आसूं निचे गिर गया, जैसे ही आंसू गिरा एक वृक्ष उत्पन्न हो गया जिसका नाम रुद्राक्ष का वृक्ष हुआ। पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, रुद्राक्ष ऐसे ही उत्पन्न नहीं हो गया जब महादेव ने 1 हजार साल तपस्या की तब रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ, अघोर अस्त्र और अघोर मन्त्र के बराबर एक रुद्राक्ष होता है। हजारों साल का तप की ताकत रुद्राक्ष में होती है।

72 साल बाद ऐसा संयोग, रुद्राक्ष को कैसे करें सिद्ध? सिद्धि 

पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया की कुल 9 प्रकार के रुद्राक्ष होते है, उन 9 रुद्राक्ष को शंकर भगवन की शिवलिंग के पास रख कर 7 लोटा जल, 5 बार दूध और 2 बार घी लेपन कर देते है और बेल पत्र के पेड़ के निचे उसे धारण कर लेते हो तो आपकी सब मनोकमना पूरी हो जाएगी। 72 साल बाद ये सावन आया है, लोग तरसते है इस सावन के लिए, ताकि रुद्राक्ष को सिद्ध कर सके। अब तो रुद्राक्ष में रीसर्च भी चल रहा है, कि तांबे के लोटा में रुद्राक्ष रख उस पानी को शिवलिंग में चढ़ाया जाए तो सब मनोकमा पूरी कैसे रही है।

“शिव कथा कहती है सबसे पहले वाचक भी शंकर है, श्रोता भी शंकर है” 

पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया कि, शिव कथा कहती है जब आपको लगता है मुझसे ये कार्य नहीं हो रहा है, मैंने बहुत प्रयास कर लिया तो शिव महापुराण कथा का श्रवण करें ताकि आपकी मनोकमना पूरी हो। भगवान ब्रह्मा शिव जी के पास पहुंचे और कहने लगे की मैं सृष्टि कैसे बढ़ाऊ? तब ब्रह्मा जी ने सावन महीने के शिवरात्रि का इंतजार किया। ब्रह्मा जी ने शिव का स्मरण किया। भगवान शिव की कृपा हुई। माता प्रसूति के गर्भ से सती का जन्म हुआ, भगवान शिव सती माता को कुंभज ऋषि के आशाराम में कथा सुनाने ले गए। कथा शुरू हुई, महादेव का मन कथा में लग गया, माता सती का मन नहीं लगा, शिव कथा कहती है सबसे पहले वाचक भी शंकर है श्रोता भी शंकर है, माता सती ने शिव जी की परीक्षा ले ली और अपना त्याग कर दिया, दक्ष प्रजापति के यज्ञ में माता सती भस्म हो गई। माता सती ने प्राण त्याग दिया। महादेव को बड़ा दुखा हुआ, उनको दुःख ये हुआ की मेरे नजदीक रहने वाली सती ने यज्ञ का अपमान कर दिया। महादेव क्रोधित हो गए। भस्म हुई माता सती हिमालय में माता पार्वती के रूप में प्रकट होती है, माता पार्वती ने खूब साधना की, इसका परिणाम यह निकला की महादेव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।

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